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भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था का एक अध्ययन || *जामुन का पेड़*

भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था का एक अध्ययन

    *जामुन का पेड़*
       
*लेखक : कृशन चन्दर*

👉रात को बड़े जोर का अंधड़ चला। सेक्रेटेरिएट के लॉन में जामुन का एक पेड़ गिर पडा। सुबह जब माली ने देखा तो उसे मालूम हुआ कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।
माली दौड़ा दौड़ा चपरासी के पास गया, चपरासी दौड़ा दौड़ा क्‍लर्क के पास गया, क्‍लर्क दौड़ा दौड़ा सुपरिन्‍टेंडेंट के पास गया। सुपरिन्‍टेंडेंट दौड़ा दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में ही गिरे हुए पेड़ के नीचे दबे आदमी के इर्द गिर्द मजमा इकट्ठा हो गया।
‘’बेचारा जामुन का पेड़ कितना फलदार था।‘’ एक क्‍लर्क बोला।
‘’इसकी जामुन कितनी रसीली होती थी।‘’ दूसरा क्‍लर्क बोला।
‘’मैं फलों के मौसम में झोली भरके ले जाता था। मेरे बच्‍चे इसकी जामुनें कितनी खुशी से खाते थे।‘’ तीसरे क्‍लर्क का यह कहते हुए गला भर आया।
‘’मगर यह आदमी?’’ माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी की तरफ इशारा किया।
‘’हां, यह आदमी’’ सुपरिन्‍टेंडेंट सोच में पड़ गया।
‘’पता नहीं जिंदा है कि मर गया।‘’ एक चपरासी ने पूछा।
‘’मर गया होगा। इतना भारी तना जिसकी पीठ पर गिरे, वह बच कैसे सकता है?’’ दूसरा चपरासी बोला।
‘’नहीं मैं जिंदा हूं।‘’ दबे हुए आदमी ने बमुश्किल कराहते हुए कहा।
‘’जिंदा है?’’ एक क्‍लर्क ने हैरत से कहा।
‘’पेड़ को हटा कर इसे निकाल लेना चाहिए।‘’ माली ने मशविरा दिया।
‘’मुश्किल मालूम होता है।‘’ एक काहिल और मोटा चपरासी बोला। ‘’पेड़ का तना बहुत भारी और वजनी है।‘’
‘’क्‍या मुश्किल है?’’ माली बोला। ‘’अगर सुपरिन्‍टेंडेंट साहब हुकम दें तो अभी पंद्रह बीस माली, चपरासी और क्‍लर्क जोर लगा के पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकाल सकते हैं।‘’
‘’माली ठीक कहता है।‘’ बहुत से क्‍लर्क एक साथ बोल पड़े। ‘’लगाओ जोर हम तैयार हैं।‘’
एकदम बहुत से लोग पेड़ को काटने पर तैयार हो गए।
‘’ठहरो’’, सुपरिन्‍टेंडेंट बोला- ‘’मैं अंडर-सेक्रेटरी से मशविरा कर लूं।‘’
सु‍परिन्‍टेंडेंट अंडर सेक्रेटरी के पास गया। अंडर सेक्रेटरी डिप्‍टी सेक्रेटरी के पास गया। डिप्‍टी सेक्रेटरी जाइंट सेक्रेटरी के पास गया। जाइंट सेक्रेटरी चीफ सेक्रेटरी के पास गया। चीफ सेक्रेटरी ने जाइंट सेक्रेटरी से कुछ कहा। जाइंट सेक्रेटरी ने डिप्‍टी सेक्रेटरी से कहा। डिप्‍टी सेक्रेटरी ने अंडर सेक्रेटरी से कहा। फाइल चलती रही। इसी में आधा दिन गुजर गया।
दोपहर को खाने पर, दबे हुए आदमी के इर्द गिर्द बहुत भीड़ हो गई थी। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कुछ मनचले क्‍लर्कों ने मामले को अपने हाथ में लेना चाहा। वह हुकूमत के फैसले का इंतजार किए बगैर पेड़ को खुद से हटाने की तैयारी कर रहे थे कि इतने में, सुपरिन्‍टेंडेंट फाइल लिए भागा भागा आया, बोला- हम लोग खुद से इस पेड़ को यहां से नहीं हटा सकते। हम लोग वाणिज्‍य विभाग के कर्मचारी हैं और यह पेड़ का मामला है, पेड़ कृषि विभाग के तहत आता है। इसलिए मैं इस फाइल को अर्जेंट मार्क करके कृषि विभाग को भेज रहा हूं। वहां से जवाब आते ही इसको हटवा दिया जाएगा।
दूसरे दिन कृषि विभाग से जवाब आया कि पेड़ हटाने की जिम्‍मेदारी तो वाणिज्‍य विभाग की ही बनती है।
यह जवाब पढ़कर वाणिज्‍य विभाग को गुस्‍सा आ गया। उन्‍होंने फौरन लिखा कि पेड़ों को हटवाने या न हटवाने की जिम्‍मेदारी कृषि विभाग की ही है। वाणिज्‍य विभाग का इस मामले से कोई ताल्‍लुक नहीं है।
दूसरे दिन भी फाइल चलती रही। शाम को जवाब आ गया। ‘’हम इस मामले को हार्टिकल्‍चर विभाग के सुपुर्द कर रहे हैं, क्‍योंकि यह एक फलदार पेड़ का मामला है और कृषि विभाग सिर्फ अनाज और खेती-बाड़ी के मामलों में फैसला करने का हक रखता है। जामुन का पेड़ एक फलदार पेड़ है, इसलिए पेड़ हार्टिकल्‍चर विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है।
रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया। हालांकि लॉन के चारों तरफ पुलिस का पहरा था, कि कहीं लोग कानून को अपने हाथ में लेकर पेड़ को खुद से हटवाने की कोशिश न करें। मगर एक पुलिस कांस्‍टेबल को रहम आ गया और उसने माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाजत दे दी।
माली ने दबे हुए आदमी से कहा- ‘’तुम्‍हारी फाइल चल रही है। उम्‍मीद है कि कल तक फैसला हो जाएगा।‘’
दबा हुआ आदमी कुछ न बोला।
माली ने पेड़ के तने को गौर से देखकर कहा, अच्‍छा है तना तुम्‍हारे कूल्‍हे पर गिरा। अगर कमर पर गिरता तो रीढ़ की हड्डी टूट जाती।
दबा हुआ आदमी फिर भी कुछ न बोला।
माली ने फिर कहा ‘’तुम्‍हारा यहां कोई वारिस हो तो मुझे उसका अता-पता बताओ। मैं उसे खबर देने की कोशिश करूंगा।‘’
‘’मैं लावारिस हूं।‘’ दबे हुए आदमी ने बड़ी मुश्किल से कहा।
माली अफसोस जाहिर करता हुआ वहां से हट गया।
तीसरे दिन हार्टिकल्‍चर विभाग से जवाब आ गया। बड़ा कड़ा जवाब लिखा गया था। काफी आलोचना के साथ। उससे हार्टिकल्‍चर विभाग का सेक्रेटरी साहित्यिक मिजाज का आदमी मालूम होता उसने लिखा था- ‘’हैरत है, इस समय जब ‘पेड़ उगाओ’ स्‍कीम बड़े पैमाने पर चल रही है, हमारे मुल्‍क में ऐसे सरकारी अफसर मौजूद हैं, जो पेड़ काटने की सलाह दे रहे हैं, वह भी एक फलदार पेड़ को! और वह भी जामुन के पेड़ को !! जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है। हमारा विभाग किसी भी हालत में इस फलदार पेड़ को काटने की इजाजत नहीं दे सकता।‘’
‘’अब क्‍या किया जाए?’’ एक मनचले ने कहा- ‘’अगर पेड़ नहीं काटा जा सकता तो इस आदमी को काटकर निकाल लिया जाए! यह देखिए, उस आदमी ने इशारे से बताया। अगर इस आदमी को बीच में से यानी धड़ की जगह से काटा जाए, तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा और आधा आदमी उधर से बाहर आ जाएगा और पेड़ भी वहीं का वहीं रहेगा।‘’
‘’मगर इस तरह से तो मैं मर जाऊंगा !’’ दबे हुए आदमी ने एतराज किया।
‘’यह भी ठीक कहता है।‘’ एक क्‍लर्क बोला।
आदमी को काटने का नायाब तरीका पेश करने वाले ने एक पुख्‍ता दलील पेश की- ‘’आप जानते नहीं हैं। आजकल प्‍लास्टिक सर्जरी के जरिए धड़ की जगह से, इस आदमी को फिर से जोड़ा जा सकता है।‘’
अब फाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया गया।
अब फाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया गया। मेडिकल डिपार्टमेंट ने फौरन इस पर एक्‍शन लिया और जिस दिन फाइल मिली उसने उसी दिन विभाग के सबसे काबिल प्‍लास्टिक सर्जन को जांच के लिए मौके पर भेज दिया गया। सर्जन ने दबे हुए आदमी को अच्‍छी तरह टटोल कर, उसकी सेहत देखकर, खून का दबाव, सांस की गति, दिल और फेफड़ों की जांच करके रिपोर्ट भेज दी कि, ‘’इस आदमी का प्‍लास्टिक ऑपरेशन तो हो सकता है, और ऑपरेशन कामयाब भी हो जाएगा, मगर आदमी मर जाएगा।
लिहाजा यह सुझाव भी रद्द कर दिया गया।
रात को माली ने दबे हुए आदमी के मुंह में खिचड़ी डालते हुए उसे बताया ‘’अब मामला ऊपर चला गया है। सुना है कि सेक्रेटेरियट के सारे सेक्रेटरियों की मीटिंग होगी। उसमें तुम्‍हारा केस रखा जाएगा। उम्‍मीद है सब काम ठीक हो जाएगा।‘’
दबा हुआ आदमी एक आह भर कर आहिस्‍ते से बोला- ‘’हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन खाक हो जाएंगे हम, तुमको खबर होने तक।‘’
माली ने अचंभे से मुंह में उंगली दबाई। हैरत से बोला- ‘’क्‍या तुम शायर हो।‘’
दबे हुए आदमी ने आहिस्‍ते से सर हिला दिया।
दूसरे दिन माली ने चपरासी को बताया, चपरासी ने क्‍लर्क को और क्‍लर्क ने हेड-क्‍लर्क को। थोड़ी ही देर में सेक्रेटेरिएट में यह बात फैल गई कि दबा हुआ आदमी शायर है। बस फिर क्‍या था। लोग बड़ी संख्‍या में शायर को देखने के लिए आने लगे। इसकी खबर शहर में फैल गई। और शाम तक मुहल्‍ले मुहल्‍ले से शायर जमा होना शुरू हो गए। सेक्रेटेरिएट का लॉन भांति भांति के शायरों से भर गया। सेक्रेटेरिएट के कई क्‍लर्क और अंडर-सेक्रेटरी तक, जिन्‍हें अदब और शायर से लगाव था, रुक गए। कुछ शायर दबे हुए आदमी को अपनी गजलें सुनाने लगे, कई क्‍लर्क अपनी गजलों पर उससे सलाह मशविरा मांगने लगे।
जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी शायर है, तो सेक्रेटेरिएट की सब-कमेटी ने फैसला किया कि चूंकि दबा हुआ आदमी एक शायर है लिहाजा इस फाइल का ताल्‍लुक न तो कृषि विभाग से है और न ही हार्टिकल्‍चर विभाग से बल्कि सिर्फ संस्‍कृति विभाग से है। अब संस्‍कृति विभाग से गुजारिश की गई कि वह जल्‍द से जल्‍द इस मामले में फैसला करे और इस बदनसीब शायर को इस पेड़ के नीचे से रिहाई दिलवाई जाए।
फाइल संस्‍कृति विभाग के अलग अलग सेक्‍शन से होती हुई साहित्‍य अकादमी के सचिव के पास पहुंची। बेचारा सचिव उसी वक्‍त अपनी गाड़ी में सवार होकर सेक्रेटेरिएट पहुंचा और दबे हुए आदमी से इंटरव्‍यू लेने लगा।
‘’तुम शायर हो उसने पूछा।‘’
‘’जी हां’’ दबे हुए आदमी ने जवाब दिया।
‘’क्‍या तखल्‍लुस रखते हो’’
‘’अवस’’
‘’अवस’’! सचिव जोर से चीखा। क्‍या तुम वही हो जिसका मजमुआ-ए-कलाम-ए-अक्‍स के फूल हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
दबे हुए शायर ने इस बात पर सिर हिलाया।
‘’क्‍या तुम हमारी अकादमी के मेंबर हो?’’ सचिव ने पूछा।
‘’नहीं’’
‘’हैरत है!’’ सचिव जोर से चीखा। इतना बड़ा शायर! अवस के फूल का लेखक!! और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है! उफ उफ कैसी गलती हो गई हमसे! कितना बड़ा शायर और कैसे गुमनामी के अंधेरे में दबा पड़ा है!
‘’गुमनामी के अंधेरे में नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे दबा हुआ… भगवान के लिए मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिए।‘’
‘’अभी बंदोबस्‍त करता हूं।‘’ सचिव फौरन बोला और फौरन जाकर उसने अपने विभाग में रिपोर्ट पेश की।
दूसरे दिन सचिव भागा भागा शायर के पास आया और बोला ‘’मुबारक हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकादमी ने तुम्‍हें अपनी साहित्‍य समिति का सदस्‍य चुन लिया है। ये लो आर्डर की कॉपी।‘’
‘’मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो।‘’ दबे हुए आदमी ने कराह कर कहा। उसकी सांस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और उसकी आंखों से मालूम होता था कि वह बहुत कष्‍ट में है।
‘’यह हम नहीं कर सकते’’ सचिव ने कहा। ‘’जो हम कर सकते थे वह हमने कर दिया है। बल्कि हम तो यहां तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ तो तुम्‍हारी बीवी को पेंशन दिला सकते हैं। अगर तुम आवेदन दो तो हम यह भी कर सकते हैं।‘’
‘’मैं अभी जिंदा हूं।‘’ शायर रुक रुक कर बोला। ‘’मुझे जिंदा रखो।‘’
‘’मुसीबत यह है’’ सरकारी अकादमी का सचिव हाथ मलते हुए बोला, ‘’हमारा विभाग सिर्फ संस्‍कृति से ताल्‍लुक रखता है। आपके लिए हमने वन विभाग को लिख दिया है। अर्जेंट लिखा है।‘’
शाम को माली ने आकर दबे हुए आदमी को बताया कि कल वन विभाग के आदमी आकर इस पेड़ को काट देंगे और तुम्‍हारी जान बच जाएगी।
माली बहुत खुश था। हालांकि दबे हुए आदमी की सेहत जवाब दे रही थी। मगर वह किसी न किसी तरह अपनी जिंदगी के लिए लड़े जा रहा था। कल तक… सुबह तक… किसी न किसी तरह उसे जिंदा रहना है।
दूसरे दिन जब वन विभाग के आदमी आरी, कुल्‍हाड़ी लेकर पहुंचे तो उन्‍हें पेड़ काटने से रोक दिया गया। मालूम हुआ कि विदेश मंत्रालय से हुक्‍म आया है कि इस पेड़ को न काटा जाए। वजह यह थी कि इस पेड़ को दस साल पहले पिटोनिया के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगाया था। अब यह पेड़ अगर काटा गया तो इस बात का पूरा अंदेशा था कि पिटोनिया सरकार से हमारे संबंध हमेशा के लिए बिगड़ जाएंगे।
‘’मगर एक आदमी की जान का सवाल है’’ एक क्‍लर्क गुस्‍से से चिल्‍लाया।
‘’दूसरी तरफ दो हुकूमतों के ताल्‍लुकात का सवाल है’’ दूसरे क्‍लर्क ने पहले क्‍लर्क को समझाया। और यह भी तो समझ लो कि पिटोनिया सरकार हमारी सरकार को कितनी मदद देती है। क्‍या हम इनकी दोस्‍ती की खातिर एक आदमी की जिंदगी को भी कुरबान नहीं कर सकते।
‘’शायर को मर जाना चाहिए?’’
‘’बिलकुल’’
अंडर सेक्रेटरी ने सुपरिंटेंडेंट को बताया। आज सुबह प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गए हैं। आज चार बजे विदेश मंत्रालय इस पेड़ की फाइल उनके सामने पेश करेगा। वो जो फैसला देंगे वही सबको मंजूर होगा।
शाम चार बजे खुद सुपरिन्‍टेंडेंट शायर की फाइल लेकर उसके पास आया। ‘’सुनते हो?’’ आते ही खुशी से फाइल लहराते हुए चिल्‍लाया ‘’प्रधानमंत्री ने पेड़ को काटने का हुक्‍म दे दिया है। और इस मामले की सारी अंतर्राष्‍ट्रीय  जिम्‍मेदारी अपने सिर पर ले ली है। कल यह पेड़ काट दिया जाएगा और तुम इस मुसीबत से छुटकारा पा लोगे।‘’
‘’सुनते हो आज तुम्‍हारी फाइल मुकम्‍मल हो गई।‘’ सुपरिन्‍टेंडेंट ने शायर के बाजू को हिलाकर कहा। मगर शायर का हाथ सर्द था। आंखों की पुतलियां बेजान थीं और चींटियों की एक लंबी कतार उसके मुंह में जा रही थी।
उसकी जिंदगी की फाइल मुकम्‍मल हो चुकी थी।

*-पद्म भूषण कृश्न चन्दर(1914-1977)*
यह कहानी एनसीईआरटी की 11 वीं कक्षा की हिन्दी में भी है।

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